समाजवाद एवं साम्यवाद – Socialism and Communism
समाजवाद
- समाजवाद एक ऐसी विचारधारा है जिसके अनुसार उत्पादन के सभी साधनों पर स्वामित्व मुख्यतः सरकार का होना चाहिए।
समाजवाद की उत्पत्ति
- औद्योगिक क्रांति के कारण पूंजीपति वर्गों द्वारा श्रमिक वर्ग का अत्यधिक शोषण होता था।
- आर्थिक दृष्टि से समाज दो वर्गों – पूंजीपति वर्ग और श्रमिक वर्ग – में विभाजित हो गया था।
- सेंट साइमन, फोरियर, लुई बलां, ब्रा, राबर्ट ओवेन, कार्ल मार्क्स एवं एंगेल्स जैसे विचारकों ने इस पूंजीवादी आर्थिक व्यवस्था की कड़ी आलोचना की।
- इन विचारकों ने सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में एक नवीन विचारधारा का प्रतिपादन किया जिसे ‘समाजवाद’ कहा जाता है।
दो तरह के समाजवाद
- ऐतिहासिक दृष्टि से समाजवाद का विभाजन दो चरणों में किया जाता है:
- मार्क्स से पूर्व का समाजवाद (यूटोपियन)
- मार्क्स से पक्ष का समाजवाद (वैज्ञानिक)
यूटोपियन समाजवाद
प्रमुख विचारक: सेंट साइमन, चार्ल्स फोरियर, लुई बलां, राबर्ट ओवेन
- इन समाजवादियों की दृष्टि आदर्शवादी और उनके कार्यक्रम की प्रकृति अव्यावहारिक थी।
- इन्होंने वर्ग समन्वय पर बल दिया।
- उन्होंने पूंजी और श्रम के बीच संबंधों की समस्या का समाधान करने का प्रयास किया।
- मार्क्स ने इनकी सीमाओं को पहचाना और आगे आधुनिक समाजवाद का विकास किया।
कार्ल मार्क्स (1818-1883)

- जन्म: 5 मई 1818, ट्रियर नगर (जर्मनी), एक यहूदी परिवार में
- शिक्षा: बोन विश्वविद्यालय में विधि
- प्रभावित विचारक: हीगेल, मोंटेस्क्यू, रूसो
- 1844 में पेरिस में फ्रेडरिक एंगेल्स से मुलाकात हुई, जो जीवनपर्यंत मित्र बने।
- 1848 में मार्क्स और एंगेल्स ने मिलकर ‘साम्यवादी घोषणा पत्र’ प्रकाशित किया।
- 1867 में लिखी गई ‘दास कैपिटल’ को समाजवादियों की बाइबिल कहा जाता है।
मार्क्स के प्रमुख सिद्धांत:
- द्वंदात्मक भौतिकवाद
- वर्ग संघर्ष
- इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या
- मूल्य एवं अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत
- राज्यहीन व वर्गहीन समाज की स्थापना
ऐतिहासिक भौतिकवाद
- मार्क्स के अनुसार इतिहास उत्पादन के साधनों के स्वामित्व हेतु वर्गों के बीच संघर्ष की कथा है।
- हर ऐतिहासिक परिवर्तन के मूल में आर्थिक शक्तियां होती हैं।
इतिहास के छः चरण:
- आदिम साम्यवादी युग
- दासता का युग
- सामंती युग
- पूंजीपति युग
- समाजवादी युग
- साम्यवादी युग
मार्क्स तथा प्रथम अंतर्राष्ट्रीय संघ
- 1864 में प्रथम अंतर्राष्ट्रीय संघ की स्थापना हुई।
- उद्घाटन भाषण में मार्क्स ने कहा कि श्रमिकों का सुधार पूंजीवाद के विनाश से ही संभव है।
- प्रमुख नारा: “अधिकार के बिना कर्तव्य नहीं और कर्तव्य के बिना अधिकार नहीं।”
द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय संघ
- 14 जुलाई को पेरिस में 20 देशों के 400 प्रतिनिधियों का सम्मेलन हुआ।
- निर्णय: 1 मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
- 1890 में पहली बार 1 मई को यूरोप और अमेरिका में मजदूरों ने हड़ताल की।
- इससे समाजवादी आंदोलन को वैश्विक पहचान मिली।
1917 की बोल्शेविक क्रांति
- नवंबर 1917 में रूस में बोल्शेविक क्रांति हुई और जार शासन का अंत हुआ।
मुख्य कारण:
- जार की निरंकुशता
- कृषकों एवं मजदूरों की दयनीय स्थिति
- औद्योगीकरण की समस्या
- रुसीकरण नीति
- विदेशी प्रभाव (क्रीमिया युद्ध, जापान से हार, 1905 की क्रांति)
- खूनी रविवार (22 जनवरी)
- मार्क्सवाद एवं बुद्धिजीवियों का प्रभाव
- प्रथम विश्व युद्ध में रूस की पराजय
मार्च की क्रांति एवं निरंकुश राजतंत्र का अंत
- 7 मार्च 1917 को ‘रोटी दो’ नारे के साथ जुलूस निकला।
- 8 मार्च को महिलाओं ने हड़ताल की और सैनिकों ने विद्रोह कर दिया।
- 12 मार्च को जार निकोलस द्वितीय ने गद्दी त्याग दी।
- 15 मार्च को लोबाव की अध्यक्षता में बुर्जुआ सरकार बनी लेकिन असफल रही।
- केरेंस्की के नेतृत्व में उदार समाजवादियों की सरकार बनी परंतु बोल्शेविकों ने इसे अस्वीकार कर दिया।
बोल्शेविक क्रांति (नवंबर 1917)

- लेनिन स्विट्जरलैंड से जर्मनी की मदद से रूस लौटे।
- उन्होंने ‘अप्रैल थीसिस’ में भूमि, शांति और रोटी के नारे दिए।
- 7 नवंबर 1917 को बोल्शेविकों ने सरकार को उखाड़ फेंका और सत्ता संभाली।
U.S.S.R का जन्म और लेनिन की सरकार
- 1918 में रूस में पहला समाजवादी शासन स्थापित हुआ।
- देश का नाम ‘सोवियत समाजवादी गणराज्य का समूह’ (U.S.S.R) रखा गया।
- लेनिन ने युद्ध-साम्यवाद नीति लागू की जिससे भुखमरी बढ़ी।
- इस स्थिति के सुधार हेतु ‘नई आर्थिक नीति’ (NEP) लाई गई।
स्टालिन
- 1924 में लेनिन की मृत्यु के बाद स्टालिन सत्ता में आया।
- वह कम्युनिस्ट पार्टी का महासचिव रहा और 1953 तक तानाशाही रूप में शासन किया।
- उसके शासन में समाजवाद का विकास प्रभावित हुआ, परंतु रूस एक शक्तिशाली राष्ट्र बना।
रूसी क्रांति का प्रभाव
- सर्वहारा वर्ग की सत्ता की स्थापना हुई।
- दुनिया दो भागों में बंट गई – साम्यवादी और पूंजीवादी।
- शीतयुद्ध की शुरुआत हुई।
- पूंजीवादी देशों के ढांचे में भी सुधार हुआ।
- उपनिवेशों की मुक्ति को बल मिला।