शहरीकरण एवं शहरी जीवन – Urbanisation and Urban Life
शहरीकरण:
- शहरीकरण का मतलब है गाँव का शहर या कस्बे के रूप में विकसित होना।
- गाँव और शहर में जनसंख्या, आजीविका, वातावरण, और सुविधाओं में अंतर होता है।
- शहरीकरण एक लंबी प्रक्रिया है जो कई शताब्दियों में विकसित हुई।
शहरी जीवन:
- समाजशास्त्री शहरी जीवन और आधुनिकता को परस्पर पूरक मानते हैं।
- शहर व्यक्ति को संतुष्ट करने के लिए अनंत संभावनाएँ प्रदान करता है।
- व्यापार और धर्म पुराने समय में शहरों की स्थापना के मुख्य आधार थे।
मध्यकालीन सामाजिक व्यवस्था:
- मध्यकालीन सामंती संरचना तेरहवीं शताब्दी तक शिखर पर थी और सोलहवीं शताब्दी तक बनी रही।
- अंततः एक नई सामाजिक और राजनीतिक संरचना विकसित हुई।
आधुनिक शहरों का उदय:
- आधुनिक शहरों का इतिहास करीब 200 साल पुराना है।
- तीन प्रक्रियाएँ औद्योगिक पूंजीवाद, उपनिवेशवाद, और लोकतांत्रिक आदर्श, शहरों की स्थापना में निर्णायक रहीं।
गाँव से शहर की ओर बदलाव:
- स्थायी सामाजिक जीवन गाँव से शुरू हुआ।
- स्थायी कृषि से संपत्ति का जमाव और सामाजिक असमानताएँ बढ़ीं।
- अत्यधिक श्रम विभाजन से व्यावसायिक विशिष्टता की जरूरत बढ़ी।
ग्रामीण और नगरीय व्यवस्था:
- गाँव और शहर की व्यवस्था जनसंख्या घनत्व और कृषि आधारित क्रियाओं पर आधारित है।
- शहरों में घनत्व अधिक होता है और कृषि का अनुपात कम होता है।
आर्थिक बदलाव:
- कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था से मुद्रा आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बदलाव हुआ।
- ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर प्रवजन नए अवसरों की तलाश में हुआ।
आधुनिक शहरी विकास:
- शहरों में दस्तकार, व्यापारी और अधिकारी बसने लगे।
- शहरी जीवन की ओर लोगों का रुझान बढ़ा, और राजनीतिक प्राधिकार का केंद्र शहर बन गए।
औद्योगीकरण और शहरीकरण:
- औद्योगीकरण ने शहरीकरण के स्वरूप को गहराई से प्रभावित किया।
- औद्योगिक क्रांति के बाद भी पश्चिमी शहर लंबे समय तक ग्रामीण किस्म के रहे।
कस्बों का विकास:
- कस्बे शिल्पकारों, व्यापारियों, और प्रशासनिक केंद्रों के रूप में विकसित हुए।
- कस्बों और शहरों की किलाबंदी उनकी ग्रामीण क्षेत्रों से पृथकता को चिन्हित करती थी।
- गंज, एक स्थायी बाजार, स्थानीय उत्पादों और विशिष्ट वर्गों की जरूरतें पूरी करता था।
अठारहवीं शताब्दी में परिवर्तन:
- पुराने नगर पतनोन्मुख हुए और नए नगरों का विकास हुआ।
- शहरों में घनी आबादी और आधुनिक प्रकार के महानगर बनने लगे।
इंग्लैंड और शहरीकरण:
- 1850 तक पश्चिमी शहर लगभग ग्रामीण किस्म के ही थे।
- लीड्स और मैनचेस्टर जैसे औद्योगिक शहरों में प्रवासी मजदूरों की भारी संख्या थी।
- 1750 तक लंदन इंग्लैंड का प्रमुख महानगर बन चुका था।
लंदन का शहरी स्वरूप:
- लंदन के पाँच प्रमुख उद्योग थे: छपाई, परिधान, धातु, लकड़ी, और चिकित्सा उपकरण।
- 19वीं शताब्दी में लंदन प्रवासियों के लिए प्रमुख केंद्र बना।
महानगर का स्वरूप:
- महानगर एक घनी आबादी वाला शहर होता है, जो राजनीतिक और आर्थिक गतिविधियों का केंद्र है।
- लंदन में क्लर्क, दुकानदार, मजदूर, और फेरीवालों की बड़ी संख्या थी।
प्रवास और टेनेमेंट्स:
- प्रवासी मजदूरों के लिए सस्ते और असुरक्षित आवास बनने लगे।
- टेनेमेंट्स: भीड़भाड़ वाले अपार्टमेंट जो गरीब इलाकों में पाए जाते थे।

गरीबी और सामाजिक असमानता
- गरीब लोगों के लिए खैराती संस्थाओं और रैन बसेरों की व्यवस्था की जाती थी।
- शहरी जीवन में संपन्नता और गरीबी की परस्पर विरोधी छवियाँ थीं।
औद्योगीकरण और नैतिक मूल्य:
- औद्योगीकरण ने सामाजिक नैतिक मूल्यों में बदलाव लाया।
- 19वीं शताब्दी में अपराध और बाल मजदूरी में वृद्धि हुई।
- प्राथमिक शिक्षा और फैक्ट्री कानूनों ने बच्चों को औद्योगिक कार्यों से बाहर रखने में मदद की।
शहरों में गरीब वर्ग और आवास की समस्याएँ:
- शहरों में रोजगार के अवसर थे, लेकिन साथ ही निर्धन मजदूर वर्ग उभर रहा था।
- झोपड़पट्टियों में रहने वाले मजदूरों के लिए आवास की सुविधाएँ शुरू की गई।
- एक कमरे वाले मकान जनस्वास्थ्य के लिए खतरे का कारण बन रहे थे।
- इन समस्याओं को दूर करने के लिए मजदूरों के लिए आवासीय योजनाएँ बनाई गईं।
लंदन में आवासीय सुधार:
- लंदन के घनी बस्तियों को कम करने के लिए उपाय किए गए।
- ‘गार्डन सिटी’ अवधारणा के तहत हरे-भरे बगीचे बनाए गए, लेकिन केवल संपन्न परिवार इन्हें खरीद सकते थे।
- विश्वयुद्धों के दौरान ब्रिटिश राज्य ने मजदूर वर्ग के लिए आवास बनाए।
उपशहरी बस्तियाँ और परिवहन व्यवस्था:
- उपशहरी बस्तियाँ अस्तित्व में आईं क्योंकि लोग पैदल अपने काम तक नहीं पहुँच सकते थे।
- सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की स्थापना की गई ताकि लोग आसानी से कार्यस्थल तक पहुँच सकें।
न्यू अर्जविक और सामुदायिक जीवन:
- न्यू अर्जविक, एक बगीचा उपशहर, जहां चारों ओर हरित पट्टी विकसित की गई थी।
- रेमंड अनवित और वैरी पार्कर ने नया सामुदायिक जीवन विकसित किया।
भूमिगत रेलवे और परिवहन क्रांति:
- लंदन के भूमिगत रेलवे ने आवासीय समस्याओं को हल किया और शहर के विभिन्न हिस्सों को जोड़ने में मदद की।
- 1863 में भूमिगत रेल का उद्घाटन हुआ और 1880 तक इसका नेटवर्क फैल चुका था।
- भूमिगत रेल की सफलता के बावजूद गरीबों को परेशानियाँ हुईं, जैसे मकान गिराना और सड़कें बंद करना।
जन परिवहन और सामाजिक परिवर्तन:
- जन परिवहन के साधनों में परिवर्तन से सामाजिक परिवर्तन आया।
- न्यूयॉर्क, टोकियो, और शिकागो ने भी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था स्थापित की।
- बेहतर जन परिवहन ने शहरों की आर्थिक स्थिति और सामाजिक व्यवस्था को नया आकार दिया।
सामाजिक बदलाव और शहरी जीवन:
- शहरों का सामाजिक जीवन आधुनिकता से जुड़ा और व्यक्तिवाद का उदय हुआ।
- शहरी समूह पहचान ने सह-अस्तित्व और पृथक्करण की भावना को बढ़ावा दिया।
महिलाओं का सामाजिक और आर्थिक योगदान:
- महिलाओं ने व्यक्तिगत अधिकारों के लिए संघर्ष किया, जैसे मताधिकार और संपत्ति अधिकार।
- द्वितीय विश्वयुद्ध में महिलाओं ने कारखानों में काम शुरू किया।
- उपभोक्ता विज्ञापन में महिलाओं की भूमिका ने उनकी सोच को प्रभावित किया।
आंदोलनों और पुरुषों की भागीदारी:
- चार्टिस्ट आंदोलन और दस घंटे के आंदोलन जैसे प्रयास पुरुषों की भागीदारी से सफल हुए।
- व्यवसायी वर्ग के उदय ने शहरी अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी।
पूंजीवाद और मिल मालिक:
- पूंजीवाद ने स्वतंत्र उद्यम, बैंकिंग, बीमा, और साझेदारी जैसी प्रणालियाँ विकसित कीं।
- नए मिल मालिक औद्योगिक पूंजीपति बने और राजनीति में प्रभाव डाला।
मध्यम वर्ग का उदय:
- शिक्षित मध्यम वर्ग ने वकील, डॉक्टर, शिक्षक, इंजीनियर जैसे पेशों में अपनी पहचान बनाई।
- वेतनभोगी वर्ग के रूप में मध्यम वर्ग ने समान जीवन मूल्यों को अपनाया।
श्रमिक वर्ग और उनका संघर्ष:
- श्रमिक वर्ग का शोषण हुआ और वे बेहतर रोजगार के लिए शहरों की ओर पलायन करने लगे।
- श्रमिक संघ और ट्रेड यूनियन के माध्यम से श्रमिकों ने अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ी।
- फैक्टरी नियम और मजदूर आंदोलन ने श्रमिक वर्ग की स्थिति में सुधार लाने का प्रयास किया।
औपनिवेशिक भारतीय शहर – बम्बई:

- भारत में शहरीकरण धीमा रहा, बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में केवल 11% लोग शहरों में रहते थे।
- बम्बई औपनिवेशिक भारत की वाणिज्यिक राजधानी थी और एक प्रमुख बंदरगाह होने के कारण अंतरराष्ट्रीय व्यापार का केंद्र बना।
- शुरुआत में बम्बई सात टापुओं का समूह था, जिन्हें जोड़कर एक विशाल शहर बनाया गया।
औद्योगिक विकास:
- 1854 में पहली कपड़ा मिल स्थापित हुई और 1921 तक 85 कपड़ा मिलें बन गईं।
- 1931 तक बम्बई के निवासियों में अधिकांश लोग बाहर से आए हुए थे।
आवास और सामाजिक संरचना:
- बम्बई में प्रति मकान में 20 लोग रहते थे, जिससे घनी आबादी की समस्या उत्पन्न हुई।
- 70% लोग चॉल्स (बहुमंजिला इमारतों) में रहते थे, जिनमें बुनियादी सुविधाओं की कमी थी।
शहरी योजना:
- 1898 में प्लेग महामारी के डर से सिटी ऑफ बॉम्बे इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट बना।
- 1918 में किराया नियंत्रण कानून पारित किया गया, लेकिन आवास समस्या का समाधान नहीं हुआ।
भूमि विकास परियोजनाएँ:
- 1864 में मालाबार हिल से कोलबा तक का तटीय क्षेत्र विकसित करने का काम शुरू हुआ।
- 1914-1918 के बीच बॉम्बे पोर्ट ट्रस्ट ने बालार्ड एस्टेट और मरीन ड्राइव जैसी परियोजनाएँ पूरी कीं।
निष्कर्ष:
- बम्बई ने कठिनाइयों के बावजूद स्वतंत्रता और नए अवसरों की तलाश करने वालों को आकर्षित किया, जिससे यह आर्थिक और सामाजिक गतिशीलता का केंद्र बना।
सिंगापुर शहर का विकास:
- एशियाई देशों के सभी शहर अनियोजित नहीं थे; सिंगापुर एक योजनाबद्ध और आदर्श उदाहरण है।
- 1965 से पहले, सिंगापुर गंदगी और भीड़भाड़ से भरा एक साधारण एशियाई शहर था।
- आजादी (1965) के बाद, ली कुआन येव के नेतृत्व में व्यापक आवास एवं विकास कार्यक्रम शुरू किया गया।
मुख्य विशेषताएँ:
- 86% जनता को ऊँचे और सुविधाजनक मकान दिए गए, जिससे सामाजिक और शहरी जीवन बदला।
- आवासीय खंडों में हवादार गलियारे, सामुदायिक स्थान और बेहतर सुरक्षा की व्यवस्था की गई।
- नस्लीय टकरावों को रोकने के लिए सामाजिक नियंत्रण और नीतियाँ अपनाईं गईं।
- संचार साधनों पर कड़ा नियंत्रण रखा गया।
परिणाम:
- सिंगापुर में भौतिक संपन्नता और सुविधाएँ बढ़ीं, लेकिन राजनीतिक जीवन जीवंत नहीं रहा।
तुलना – पेरिस पुनर्निर्माण:
- बेरॉन हॉसमान ने पेरिस में चौड़ी सड़कें, बुलेवर्ड्स, पार्क, और पुलिस व्यवस्था लागू की।
- पेरिस के पुनर्निर्माण में 350,000 लोगों को विस्थापित किया गया।
- पेरिस बाद में सामाजिक और बौद्धिक प्रगति का केंद्र बना।
निष्कर्ष:
- सिंगापुर और पेरिस, दोनों ने शहरीकरण और सामाजिक सुधार के नए मानदंड प्रस्तुत किए।
पाटलीपुत्र (पटना) का विकास:
प्राचीनकाल:

- पाटलीपुत्र की स्थापना छठी शताब्दी ई.पू. में अजातशत्रु ने सैनिक शिविर के रूप में की।
- यह मौर्य साम्राज्य की राजधानी थी।
- मेगास्थनीज की ‘इंडिका’ और फाह्यान की यात्राओं में इसका उल्लेख है।
- शिल्पकला, व्यापार और शिक्षा का प्रमुख केंद्र।
मध्यकाल:
- शेरशाह सूरी ने 1541 में पुनर्स्थापित किया और दुर्ग का निर्माण कराया।
- अकबर काल में प्रमुख व्यापारिक केंद्र बना।
- 17वीं और 18वीं शताब्दी में कपास, अफीम, नील, और शोरा का व्यापार हुआ।
- 18वीं शताब्दी में अजीमुशान ने इसे ‘अजीमाबाद’ नाम दिया।
- 1786 में गोलघर का निर्माण।
- 1912 में बिहार-उड़ीसा की राजधानी बना।
- स्वतंत्रता के बाद तेजी से विस्तार हुआ।
विशेषताएँ:
- कोलकाता के बाद पूर्वी भारत का सबसे बड़ा शहर।
- शिक्षा, व्यापार और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र।
- क्षेत्रफल: 250 वर्ग किमी; जनसंख्या: 12 लाख से अधिक।
सामाजिक प्रभाव:
- नई आर्थिक व्यवस्था ने व्यापार और रोजगार को बढ़ावा दिया।
- वर्गभेद और अवसरवाद जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा।
- संतुलित सामाजिक व्यवस्था और आदर्शों का समावेश आवश्यक।
निष्कर्ष:
- पटना का विकास शहरीकरण और सांस्कृतिक गतिशीलता का अद्भुत उदाहरण है।