कृषि – Notes (Agriculture)
कृषि
- भारत कृषि की दृष्टि से एक संपन्न राष्ट्र है। यहाँ विविध प्रकार की उपजाऊ मिट्टी पायी जाती है।
- वर्ष भर पर्याप्त तापमान के कारण फसलों के लिये लंबा वर्धन काल मिलता है।
- हिमालय से निकलने वाली सतत्वाहिनी नदियों में ग्लेशियर के पिघलने से वर्ष भर पर्याप्त जल रहता है। मौनसूनी वर्षा भी भूमिगत जल एवम् सतही जल का पुनः भरण (Recharge) करती है।
- भारत की कृषि संपदा को यह प्रकृति का अनूठा उपहार है।
भारत में कृषि का महत्त्व कई कारणों से है-
- यह देश के आर्थिक जीवन का प्राण है। भारत में लगभग 2/3 लोगों की जीविका कृषि पर आधारित है।
- यहाँ की विशाल जनसंख्या के लिये भोजन कृषि से ही प्राप्त होता है।
- कई कृषि जन्य कच्चेमाल उद्योगों को प्राप्त होते हैं जैसे कपास-सूती वस्त्र उद्योग, गन्ना-चीनी उद्योग, जूट उद्योग एवं अन्य कृषि उत्पाद कृषि प्रसंस्करण उद्योगों को कच्चा माल देते हैं- जैसे रसदार फल जेली, जैम, स्ववैश उत्पादन के लिये आधार प्रदान करते हैं।
- जलवायु मिट्टी एवं धरातल की विविधता के कारण भारत में फसलों की विविधता भी पायी जाती है। कई फसलों में भारत को विश्व में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
- राष्ट्रीय आय में भारतीय कृषि का मुख्य योगदान है। देश की 24% आय कृषि से प्राप्त होती है।
भारत में कृषि भूमि उपयोग
- शुद्ध बोया गया क्षेत्र (Purely Sown Area)
- चालू परती भूमि (Current Fallow Land)
- अन्य परती (Other Fallow Land)
- कृषि योग्य व्यर्थ भूमि (Cultivable Waste Land)
शस्य गहनता (Crop Intensity):-
- कुल बोई गई फसल का क्षेत्रफल / कुल जोत क्षेत्र × 100
- यह बताता है कि एक भूमि पर एक वर्ष में कितनी बार फसल उगाई जाती है।
शुष्क भूमि कृषि की विशेषताएँ :
- वर्षा जल को संरक्षित करने की विधियों का प्रयोग किया जाता है ताकि शुष्क समय में उसका उपयोग किया जा सके।
- आवश्यकता से अधिक जल को भूमिगत जल के पुनःभरण के लिये संरक्षित रखा जाता है।
- शुष्कता के कारण यहाँ की मिट्टी में हयूमस की मात्रा बहुत कम होती है।
- शुष्क भूमि कृषि अधिकांशतः गरीब किसान करते हैं जिनके पास उन्नत कृषि करने के लिये पूँजी एवम् आवश्यक साधन का अभाव रहता है।
किसानों के उत्थान के लिये योजनाएँ :
- समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम
- सूखा प्रवण क्षेत्र विकास कार्यक्रम
- नरेगा (कार्य और रोजगार के बदले अनाज कार्यक्रम)
- जल छीजन एवम् संग्रहण की तकनीकों का प्रचार प्रसार
कृषि के प्रकार
भारत में कृषि के प्रकार भौगोलिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परिवेश के अनुसार बदलते हैं।
1. प्रारंभिक जीविका कृषि :
- परंपरागत तरीके से बिना तकनीक के खेती।
- औजार लकड़ी का हल, कुदाल और खुरपी।
- कर्तन दहन प्रणाली इसका उदाहरण।
- झूम (असम, मेघालय), पामलू (मणिपुर), दीपा (छत्तीसगढ़) प्रमुख नाम।
2. गहन जीविका कृषि :
- अधिक श्रम और परंपरागत कौशल का उपयोग।
- छोटे जोतों पर खेती, मुख्य फसलें- धान।
- उत्पादकता सीमित, व्यापार के लिए उत्पादन कम।
3. व्यापारिक कृषि :
- व्यापार हेतु खेती, अधिक पूँजी और तकनीक का उपयोग।
- मुख्य फसलें- गेहूँ, बासमती चावल, चाय, कॉफी, रबर।
- हरित क्रांति से पंजाब और हरियाणा में उन्नति।
- रोपण कृषि- चाय, कॉफी, गन्ना, केला।
फसल प्रारूप:
- भारत में तीन प्रकार की फसलें होती हैं –
1. रबी फसल:
- बुवाई:- अक्टूबर-दिसंबर, कटाई:- अप्रैल-जून।
- प्रमुख फसलें: गेहूँ, चना, सरसों।
- हरित क्रांति से स्वावलंबन लेकिन पर्यावरणीय समस्याएँ।
2. खरीफ फसल:
- बुवाई:-: वर्षा ऋतु, कटाई:- सितंबर-अक्टूबर।
- प्रमुख फसलें: धान, मकई, ज्वार, मूँग।
- मुख्य क्षेत्र: असम, बिहार, उड़ीसा।
3. जायद (गर्मी की फसल):
- बुवाई:- रबी और खरीफ के बीच।
- प्रमुख फसलें:- तरबूज, खरबूज, खीरा, भिंडी।
अन्य बातें:
- 100 सेमी वर्षा रेखा देश को दो कृषि क्षेत्रों में विभाजित करती है।
- 100 सेमी से अधिक वर्षा वाले क्षेत्र – चावल।
- 100 सेमी से कम वर्षा वाले क्षेत्र – गेहूँ।
मुख्य फसलें
भारत में कृषि की विविधता को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक:-
वर्षा की मात्रा, मिट्टी के प्रकार, कृषि पद्धति आदि।
प्रमुख फसलें: चावल, गेहूँ, मकई, ज्वार-बाजरा, दलहन-तिलहन, पेय फसल, रेशें की फसल।
चावल:

विशेषताएँ –
- प्रमुख खाद्यान्न, विश्व का 22% क्षेत्र।
- कृषि भूमि का 23%।
अनुकूल भौगोलिक दशाएँ –
- तापमान:- उष्ण कटिबंधीय फसल, 24°C आवश्यक।
- बुवाई:- 21°C, बढ़ते वक्त : 24°C, पकाई : 27°C।
- वर्षा:- 125-200 सेमी। कम वर्षा में सिंचाई की आवश्यकता।
- मिट्टी:- उपजाऊ जलोढ़, चीकायुक्त दोमट।
- श्रम:- अधिक श्रमिक आवश्यक।
उत्पादन क्षेत्र –
- मुख्य क्षेत्र:- जलोढ़, डेल्टा, तटीय भाग, हिमालयी घाटियाँ।
- प्रमुख राज्य:- प. बंगाल, बिहार, उ.प्र., आंध्रप्रदेश, उड़ीसा।
गेहूँ:
विशेषताएँ –
- दूसरा प्रमुख खाद्यान्न, विश्व का 10% उत्पादन।
- जाड़े की फसल, 50-75 सेमी वर्षा।
मुख्य क्षेत्र –
- उत्तरी मैदान, सिंचित क्षेत्र।
- प्रमुख राज्य: पंजाब, हरियाणा, उ.प्र., मध्यप्रदेश।
रागी:
- शुष्क प्रदेश की फसल।
- मुख्य राज्य: कर्नाटक, तमिलनाडु।
मकई:
- खरीफ फसल।
- अनुकूल:- 21°C-27°C तापमान, 75 सेमी वर्षा।
- प्रमुख राज्य:- कर्नाटक, बिहार, उ.प्र।
दालें:
प्रमुख फसलें –
- तूर, उड़द, मूँग, चना, मसूर।
- रबी और खरीफ दोनों।
उपयोग –
- नाइट्रोजन जोड़कर भूमि उपजाऊ बनाती हैं।
गन्ना:
- 21°C-27°C तापमान, 75-100 सेमी वर्षा।
- प्रमुख क्षेत्र:- प. बंगाल से कन्याकुमारी।
तिलहन:
प्रमुख फसलें –
- मूँगफली, सरसों, सोयाबीन, सूरजमुखी।
मुख्य क्षेत्र –
- मूँगफली:- गुजरात प्रथम।
- सरसों:- राजस्थान, हरियाणा।
- सोयाबीन:- म.प्र., महाराष्ट्र।
- सूरजमुखी:- दक्षिण भारत।
चाय (Tea):

परिचय:- सदाबहार झाड़ी की पत्तियाँ, थीन (Thein) के कारण ताजगी।
भारत का स्थान:- उत्पादन में दूसरा, खपत में पहला।
कृषि प्रारंभ:- 1840, ब्रह्मपुत्र घाटी।
आवश्यकताएँ –
- तापमान: 25-30°C।
- वर्षा: 200-250 सेमी।
- ढालदार जमीन, उर्वर मिट्टी।
- मानव श्रम आवश्यक।
प्रमुख क्षेत्र:- असम, दार्जिलिंग, नीलगिरी।
गौण क्षेत्र:- हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, त्रिपुरा आदि।
कॉफी (Coffee):
परिचय:- पेय, झाड़ी के फल से बीज।
मुख्य किस्में:- अरेबिका, लिबेरिका, रोबस्टा।
भारत में स्थान:- कर्नाटक (70%), तमिलनाडु, त्रिपुरा।
इतिहास:- यमन से लाया गया, बाबाबुदन पहाड़ियों पर आरंभ।
बागवानी फसलें (Horticulture Crops)
प्रमुख फसलें –
- फल: आम (उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश), अंगूर (महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश), सेव (हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर)।
- मसाले: काली मिर्च (केरल), नारियल (केरल, तमिल नाडु)।
- विशेष उत्पादक क्षेत्र: नागपुर (संतरा), मुजफ्फरपुर (लीची)।
- भारत का स्थान: काजू निर्यात में पहला ।
अखाद्य फसलें (Non-edible Crops)
रबर (Rubber):
- भूमध्यरेखीय जलवायु, 1880 में शुरुआत।
- क्षेत्र: केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक।
रेशेदार फसलें (Fibre Crops)
कपास (Cotton):

- कच्चा माल, काली मिट्टी, खरीफ फसल।
- प्रमुख राज्य: महाराष्ट्र, गुजरात।
जूट (Jute):
- सुनहरा रेशा, बाढ़ मैदान।
- उपयोग: रस्सी, चटाई, दस्तकारी।
कृषि सुधार (Agricultural Reforms):
प्रारंभिक प्रयास: भूमि सुधार, जमींदारी प्रथा समाप्ति।
हरित क्रांति (Green Revolution): HYV बीज, रासायनिक खाद, सिंचाई।
श्वेत क्रांति (White Revolution): दुग्ध उत्पादन में वृद्धि।
आधुनिक योजनाएँ:
- किसान क्रेडिट कार्ड, फसल बीमा।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य।
- औषधीय पौधों की खेती, पशुपालन, मछली पालन इत्यादि को बढ़ावा।
राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान
महत्व:
- भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ कृषि अर्थव्यवस्था की नींव है।
- 2001 में देश की 63% जनसंख्या कृषि से रोजगार प्राप्त कर रही थी।
वर्तमान स्थिति:
- स्वतंत्रता के बाद से सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में कृषि का योगदान घट रहा है।
- कृषि में गिरावट अन्य क्षेत्रों और क्षेत्रीय असमानताओं को बढ़ावा दे सकती है।
सुधार के लिए सरकारी प्रयास:
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना।
- पशु चिकित्सा सेवाओं और बागबानी के विकास पर जोर।
- मौसम विज्ञान और पूर्वानुमान में अनुसंधान।
निम्न उत्पादकता के कारण
प्रमुख कारण:
- बढ़ती जनसंख्या के दबाव के कारण घटता कृषि भूमि क्षेत्र।
- खेतों का छोटे आकार में विभाजन।
- सिंचाई और आधुनिक कृषि तकनीकों की कमी।
- कृषि योग्य भूमि का निम्नीकरण और मानसून पर निर्भरता।
- कृषि उत्पादों के लिए उचित मूल्य का अभाव।
- साल भर काम की अनिश्चितता।
वैश्वीकरण और कृषि
वैश्वीकरण का प्रभाव:
- भारतीय अर्थव्यवस्था का वैश्विक बाजारों से जुड़ाव।
- विदेशी उत्पादों से प्रतिस्पर्धा का सामना।
मुख्य समस्याएँ:
- प्रति एकड़ फसल उत्पादन में कमी।
- भारत की उत्पादकता जापान और अमेरिका से काफी कम।
सुधार के उपाय:
- जैव प्रौद्योगिकी और वैज्ञानिक अनुसंधान का समुचित उपयोग।
- राष्ट्रीय बाजार का एकीकरण और बुनियादी ढाँचे का विकास।
- सड़क, बिजली, सिंचाई और ऋण सुविधाओं को बढ़ावा।
खाद्य सुरक्षा
खाद्य सुरक्षा प्रणाली:
- बफर स्टॉक (फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा)।
- जन वितरण प्रणाली (PDS) द्वारा सस्ती दरों पर सामग्री उपलब्ध कराना।
चुनौतियाँ:
- गरीबी रेखा वर्गीकरण में त्रुटियाँ, जिससे जरूरतमंद लोग सहायता से वंचित रह जाते हैं।
- गैर-कृषि भूमि का उपयोग बढ़ना।
हरित क्रांति और उसके प्रभाव
हरित क्रांति:
- नई प्रौद्योगिकी (HYV बीज, उर्वरक, सिंचाई) से कृषि उत्पादन में वृद्धि।
चुनौतियाँ:
- मिट्टी का निम्नीकरण।
- जलभराव (Water Logging) और लवणता (Salinity)।
- भूमिगत जल का अत्यधिक दोहन।
पशुपालन और दुग्ध विकास
महत्व:
- छोटे और सीमांत किसानों के लिए आय का महत्वपूर्ण स्रोत।
- ऑपरेशन फ्लड से दुग्ध उत्पादन में वृद्धि।
- भारत में विश्व का 57% भैंस और 14% गाय (2003)।
स्थानीय प्रयास:
- बिहार में सुधा दुग्ध सहकारी समिति का सक्रिय योगदान।
बागबानी और कृषि का विविधीकरण
बागबानी:
- सब्जियों, फलों, औषधीय जड़ी-बूटियों और फूलों का उत्पादन बढ़ रहा है।
- स्वयं सहायता समूह और NGO इस क्षेत्र में कार्यरत।
चुनौतियाँ:
- खाद्यान्न और दालों के अंतर्गत भूमि का घटता क्षेत्र।
- फसल के समर्थन मूल्य की कमी और प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव।
आवश्यकता:
- सतत पोषणीय आधार पर खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि।
- छोटे और सीमांत किसानों के लिए समर्थन मूल्य और सुरक्षा की नीति।