Here are the comprehensive सूरदास के पद Notes, based on the NCERT textbook for CBSE Class 10 Hindi (क्षितिज), Chapter 1. These notes cover all important aspects of the chapter, including the life and background of Surdas, his major works, poetic style, and the literary and emotional interpretation of the verses from the Bhramar Geet section of Sursagar. Designed to help students clearly understand each verse, the notes explain the deep devotion of the Gopis, their emotional suffering during separation from Krishna, and their subtle responses to Uddhav’s philosophical message. The notes include brief summaries of each pad (verse), highlighting themes of love, separation, and Surdas’s spiritual and cultural outlook. With simple language and well-structured explanations, these notes serve as a quick and effective guide for exam preparation and deeper literary understanding.

सूरदास
- जन्म: सूरदास का जन्म सन् 1478 में माना जाता है। एक मत के अनुसार, उनका जन्म मथुरा के पास रुनकता या रेणुका क्षेत्र में हुआ था। दूसरे मत के अनुसार, उनका जन्म-स्थान दिल्ली के पास सीही माना जाता है।
- गुरु और निवास स्थान: वे महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्य थे और ‘अष्टछाप’ के कवियों में सबसे प्रसिद्ध थे। वे मथुरा और वृंदावन के बीच गऊघाट पर रहते थे और श्रीनाथ जी के मंदिर में भजन-कीर्तन करते थे।
- निधन: उनका निधन सन् 1583 में पारसौली में हुआ।
- प्रमुख रचनाएँ: उनके तीन ग्रंथ हैं: सूरसागर, साहित्य लहरी और सूर सारावली। इनमें से सूरसागर सबसे ज़्यादा लोकप्रिय हुआ।
- काव्य की विशेषताएँ: सूरदास की कविता में भारतीय समाज का खेती और पशुपालन से जुड़ा दैनिक और अंतरंग चित्रण मिलता है, साथ ही मनुष्य की स्वाभाविक भावनाओं का भी चित्रण है। उन्हें ‘वात्सल्य’ और ‘श्रृंगार’ का श्रेष्ठ कवि माना जाता है। कृष्ण और गोपियों का प्रेम सहज मानवीय प्रेम की प्रतिष्ठा करता है। उन्होंने मानव प्रेम की गौरवगाथा के माध्यम से सामान्य मनुष्यों को हीनता बोध से मुक्त किया और उनमें जीने की ललक पैदा की। उनकी कविता की भाषा ब्रजभाषा का निखरा हुआ रूप है और यह लोकगीतों की परंपरा की ही एक श्रेष्ठ कड़ी है।
भ्रमरगीत
- यह पद सूरसागर के ‘भ्रमरगीत’ से लिए गए हैं।
- कृष्ण के मथुरा चले जाने के बाद, उन्होंने खुद न लौटकर उद्धव के माध्यम से गोपियों को संदेश भेजा था।
- उद्धव ने गोपियों को निर्गुण ब्रह्म और योग का उपदेश देकर उनकी विरह वेदना को शांत करने का प्रयास किया।
- गोपियाँ ज्ञान मार्ग के बजाय प्रेम मार्ग को पसंद करती थीं, इसलिए उन्हें उद्धव का संदेश पसंद नहीं आया।
- इसी समय एक भौंरा वहाँ आया, और यहीं से भ्रमरगीत का आरंभ हुआ।
- गोपियों ने भौंरे के बहाने उद्धव पर व्यंग्य किए।
पदों का सारांश

- पहला पद: गोपियाँ यह शिकायत करती हैं कि यदि उद्धव कभी प्रेम के बंधन में बंधे होते, तो वे विरह की पीड़ा को महसूस कर पाते।
- दूसरा पद: गोपियाँ यह स्वीकार करती हैं कि उनके मन की इच्छाएँ मन में ही रह गईं, जिससे कृष्ण के प्रति उनके गहरे प्रेम का पता चलता है।
- तीसरा पद: गोपियाँ उद्धव की योग साधना की तुलना कड़वी ककड़ी से करती हैं और कृष्ण के प्रति अपने अटूट प्रेम में दृढ़ विश्वास व्यक्त करती हैं।
- चौथा पद: गोपियाँ उद्धव पर ताना मारती हैं कि कृष्ण अब राजनीति सीख गए हैं। अंत में, गोपियाँ उद्धव को राजधर्म (प्रजा के हित) की याद दिलाती हैं, जो सूरदास की लोकधर्मिता को दिखाता है।