निर्माण उद्योग – Notes (Manufacturing Industry)
निर्माण उद्योग

परिभाषा
विनिर्माण उद्योग कच्चे माल को उपयोगी वस्तुओं में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है।
उदाहरण:
- कपास → कपड़ा
- गन्ना → चीनी
- लौह-अयस्क → इस्पात
- बॉक्साइट → एल्यूमिनियम
इतिहास
- भारत में विनिर्माण उद्योग की शुरुआत घरेलू स्तर पर हुई।
- आधुनिक औद्योगिक विकास की शुरुआत:
- 1854: मुंबई में पहली सूती मिल की स्थापना।
- 1855: कोलकाता के पास रिशरा में पहला जूट कारखाना स्थापित।
- उद्योगों का योजनाबद्ध विकास 1951 के बाद प्रारंभ हुआ।
उद्योग स्थापना के कारक
भौतिक कारक
- कच्चा माल
- शक्ति स्रोत और जल की उपलब्धता
- अनुकूल जलवायु
मानवीय कारक
- श्रमिक
- बाजार
- परिवहन
- पूंजी और बैंकिंग सुविधाएँ
- सरकारी नीतियाँ
उद्योगों का वर्गीकरण
श्रम के आधार पर
बड़े पैमाने का उद्योग
- बड़ी मात्रा में श्रमिक और पूंजी की आवश्यकता।
- उदाहरण: सूती कपड़ा उद्योग, पटसन उद्योग।
मध्यम पैमाने का उद्योग
- सीमित श्रम और उत्पादन क्षमता।
- उदाहरण: साइकिल, रेडियो, टेलीविजन निर्माण।
छोटे पैमाने का उद्योग
- घरेलू स्तर पर सीमित संचालन।
- कम पूंजी और सरल उत्पादन विधियाँ।
- उदाहरण: आभूषण निर्माण, हस्तशिल्प।
कच्चे माल के आधार पर
भारी उद्योग
- भारी कच्चे माल का उपयोग।
- उदाहरण: लोहा और इस्पात उद्योग।
हल्के उद्योग
- हल्के कच्चे माल का उपयोग।
- उदाहरण: इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, सिलाई मशीन निर्माण।
स्वामित्व के आधार पर
सार्वजनिक उद्योग
- सरकार द्वारा संचालित उद्योग।
- उदाहरण: BHEL (भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड), SAIL (स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड)।
संयुक्त/सहकारी उद्योग
- सहकारी समितियों या व्यक्तियों के योगदान से स्थापित।
- उदाहरण: ऑयल इंडिया लिमिटेड, अमूल।
कच्चे माल के स्रोत के आधार पर
कृषि आधारित उद्योग
- कृषि उत्पादों पर निर्भर उद्योग।
- उदाहरण: वस्त्र उद्योग, जूट उद्योग, खाद्य तेल उद्योग।
प्रमुख उद्योग
सूती वस्त्र उद्योग
- भारत में सूती वस्त्र उद्योग का एक लंबा इतिहास रहा है।
- पहली सूती मिल 1818 में कोलकाता के निकट फोर्ट-ग्लास्टर में स्थापित की गई।
- 1854 में मुंबई में पहली सफल मिल स्थापित हुई।
विशेषताएँ
- सूती वस्त्र उद्योग का औद्योगिक उत्पादन में 14% और सकल घरेलू उत्पाद में 4% का योगदान है।
- यह उद्योग भारत का सबसे बड़ा और रोजगार देने वाला दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है।
- भारत में इसकी 1600 से अधिक मिलें हैं, जिनमें से 80% निजी क्षेत्र में हैं।
- मुंबई को सूती कपड़ों की महानगरी (Cotton Polis) कहा जाता है।
प्रमुख सूती वस्त्र केंद्र
- महाराष्ट्र: मुम्बई, शोलापुर, पुणे, औरंगाबाद
- गुजरात: अहमदाबाद, सूरत, राजकोट
- उत्तर प्रदेश: कानपुर, आगरा
- तमिलनाडु: कोयम्बटूर, चेन्नई
समस्याएँ
- उत्तम किस्म के कपास की कमी
- पुरानी मशीनों की प्रधानता
- कृत्रिम रेशे से प्रतिस्पर्धा
निर्यात
- भारत से सूती कपड़े का निर्यात मुख्यतः सिले सिलाए रूप में होता है।
- मुख्य आयातक देश: अमेरिका, यूके, रूस, फ्रांस, सिंगापुर।
जूट या पटसन उद्योग
- भारत जूट उत्पादन में विश्व में पहले स्थान पर है।
- जूट उद्योग में 77 मिलें हैं, जिनमें से 69 पश्चिम बंगाल में स्थित हैं।
- पश्चिम बंगाल में 80% जूट का उत्पादन होता है।
समस्याएँ
- उच्च उत्पादन लागत
- कृत्रिम धागों से प्रतिस्पर्धा
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा (बांग्लादेश, ब्राजील आदि)
निर्यात
- मुख्य आयातक देश: यूएसए, रूस, अरब देश, यूनाइटेड किंगडम।
ऊनी वस्त्र उद्योग
- यह भारत के पुराने उद्योगों में से एक है।
- प्रमुख केंद्र: पंजाब, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटका।
समस्याएँ
- कच्चे ऊन की कमी
- उत्पादों की निम्न गुणवत्ता
निर्यात
- मुख्य आयातक देश: अमेरिका, यूके, रूस, यूरोपीय देश।
रेशमी वस्त्र उद्योग
- भारत रेशम के उत्पादन में प्रसिद्ध है।
- प्रमुख रेशम उत्पादक राज्य: कर्नाटका, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर।
निर्यात
- मुख्य आयातक देश: यूएसए, यूके, रूस, सऊदी अरब, कुवैत, सिंगापुर।
कृत्रिम वस्त्र उद्योग
- यह मजबूत और टिकाऊ होते हैं, जिस कारण कृत्रिम धागे से बने वस्त्रों का उपयोग बढ़ रहा है।
- मुख्य उत्पादक राज्य: केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान।
- मुख्य निर्यातक केंद्र: मुम्बई, अहमदाबाद, सूरत, दिल्ली, कोलकाता।
चीनी उद्योग
- भारत गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक है।
- चीनी उद्योग कच्चे माल के मौसमी होने के कारण मौसमी उद्योग है।
समस्याएँ
- पुरानी तकनीक
- गन्ने का समय पर न पहुँच पाना
- हड़ताल और विद्युत की कमी
निर्यात
- मुख्य आयातक देशों में अरब देश, अमेरिका, यूके शामिल हैं।
खनिज आधारित उद्योग
लौह और इस्पात उद्योग
- भारत में पहला लौह इस्पात संयंत्र 1830 में पोर्टोनोवा (तमिलनाडु) में स्थापित हुआ।
- आधुनिक लौह इस्पात उद्योग का प्रारंभ 1864 में कुल्टी (पश्चिम बंगाल) से हुआ।
- 1907 में टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (TISCO) ने साक्ची (झारखंड) में पहला इस्पात संयंत्र स्थापित किया।
प्रमुख लौह-इस्पात संयंत्र:
- TISCO (झारखंड, जमशेदपुर)
- IISCO (पश्चिम बंगाल, बर्नपुर)
- VISL (कर्नाटक, भद्रावती)
- भिलाई (छत्तीसगढ़, भिलाई)
- राउरकेला (उड़ीसा, राउरकेला)
- दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल, दुर्गापुर)
- बोकारो (झारखंड, बोकारो)
- सेलम (तमिलनाडु, सेलम)
- विशाखापत्तनम (आंध्रप्रदेश, विशाखापत्तनम)
- विजयनगर (कर्नाटक, विजयनगर)
- मुख्य कच्चे माल: लौह अयस्क, कोकिंग कोल, चूनापत्थर, मैंगनीज अयस्क।
- 2007-08 में भारत ने 76.9 लाख टन इस्पात का उत्पादन किया और कच्चे इस्पात उत्पादकों में 5वां स्थान हासिल किया।
एल्युमिनियम उद्योग
- भारत का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण धातु उद्योग।
- अयस्क: बॉक्साइट।
- एल्युमिनियम का उपयोग: हवाई जहाज, बर्तन उद्योग, तार निर्माण, आदि।
- 1 टन एल्युमिनियम बनाने के लिए 6 टन बॉक्साइट और 18,600 किलोवाट विद्युत की आवश्यकता होती है।
- मुख्य उत्पादक राज्य: उड़ीसा (नालको व बालको), पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तमिलनाडु।
- 2007-08 में भारत ने 6.2 लाख टन एल्युमिनियम का उत्पादन किया।
ताँबा उद्योग
- भारत का पहला तांबा प्रगलन संयंत्र घाटशिला (झारखंड) में स्थापित हुआ।
- 1972 में भारतीय तांबा निगम को हिन्दुस्तान तांबा लिमिटेड के अंतर्गत हस्तांतरित किया गया।
प्रमुख तांबा प्रगलन केंद्र:
- घाटशिला (झारखंड)
- खेतड़ी (राजस्थान)
- मलंजखंड (मध्य प्रदेश)
- तुतीकोरिन (तमिलनाडु)
- 43,000 टन तांबा उत्पादित होता है, जिससे भारत की केवल 50% आवश्यकता पूरी होती है। शेष 50% आयात किया जाता है।
रासायनिक उद्योग
- रासायनिक उद्योग का भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान है। यह विश्व में 12वां और एशिया में तीसरा सबसे बड़ा है।
- भारतीय अकार्बनिक रसायन: गंधक का तेजाब (H₂SO₄), नाइट्रिक एसिड (HNO₃), सोडा ऐश (Na₂CO₃), कास्टिक सोडा (NaOH)।
- कार्बनिक रसायन: पेट्रोलियम रसायन, कृत्रिम रबड़, प्लास्टिक, औषधियाँ।
- भारत का औषधि उत्पादन में वैश्विक स्तर पर अग्रणी स्थान है और 14% उत्पादन व निर्यात में योगदान है।
- कीटनाशक उद्योग ने कृषि में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
उर्वरक उद्योग
- भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा नाइट्रोजन युक्त उर्वरक उत्पादक है।
- भारत का पहला उर्वरक संयंत्र 1906 में रानीपेट (तमिलनाडु) में स्थापित हुआ।
- प्रमुख उर्वरक उत्पादक राज्य: गुजरात, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पंजाब, केरल।
- 2006-07 में भारत ने 150 लाख टन नाइट्रोजन युक्त, 50 लाख टन फास्फेटी, और 20 लाख टन पोटाशी उर्वरक का उत्पादन किया।
- पोटाश उर्वरक बनाने के लिए पोटाशियम का आयात किया जाता है।
सीमेंट उद्योग
- भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सीमेंट उत्पादक देश है।
- प्रमुख कच्चे माल: चूनापत्थर (CaCO₃), कोयला (C), सिलिका (SiO₂), एल्यूमिनियम (Al), जिप्सम (CaSO₄ · 2H₂O)।
- पहला सीमेंट संयंत्र 1904 में चेन्नई में स्थापित हुआ था।
- 2008 में भारत में 159 बड़े और 332 छोटे सीमेंट संयंत्र थे, जिनकी कुल उत्पादन क्षमता 1683 लाख टन थी।
- भारत में सीमेंट की गुणवत्ता बहुत अच्छी है, और दक्षिण एवं पूर्वी एशिया में इसकी उच्च मांग है।
तैयार माल आधारित संरचनात्मक एवं उपकरण उद्योग
परिवहन उपकरण उद्योग
i. रेलवे:
- भारत में रेलवे का जाल बिछा है, जिससे माल एवं सवारी गाड़ी के डिब्बों और रेल इंजनों की बड़ी मांग रहती है।
- रेलवे इंजनों, यात्री डिब्बों और माल डिब्बों का उत्पादन बड़े स्तर पर होता है।
- पश्चिम बंगाल के चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स में भारी इलेक्ट्रिक इंजन बनाए जाते हैं।
- वाराणसी में डीजल चालित रेल इंजनों का निर्माण होता है।
- सवारी डिब्बे पैरांबूर, बंगलौर, कपूरथला और कोलकाता में बनते हैं।
- बिहार के पटना जिले में मोकामा में भारत वैगन एण्ड इंजीनियरिंग कम्पनी लिमिटेड है।
- मुंगेर जिले के जमालपुर में एशिया का सबसे पुराना रेलवे वर्कशॉप है।
- छपरा (सारण) में रेलवे पहिया बनाने का कारखाना निर्माणाधीन है।
ii. मोटर गाड़ी उद्योग:
- सड़क परिवहन की तुलना में रेल परिवहन कम व्यापक है, इसलिए मोटर गाड़ियाँ (जैसे ट्रक, बस, कार, मोटरसाइकिल, स्कूटर) बड़े पैमाने पर बनती हैं।
- तिपहिया स्कूटरों के निर्माण में भारत प्रथम स्थान पर है।
- मोटरसाइकिल निर्माण के प्रमुख केन्द्र: लखनऊ, सतारा, पंकी (कानपुर), अहमदाबाद, अकुर्दी, पिम्परी।
- मारूति उद्योग का कारखाना गुड़गांव (हरियाणा) में है।
- टाटा इंजीनियरिंग एण्ड लोकोमोटिव कम्पनी (TELCO) मध्यम और भारी व्यापारिक वाहनों का मुख्य उत्पादक है।
- महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा नासिक में स्कारपियो और बोलेरो का निर्माण करती है।
- गुजरात में टाटा नैनो कार का निर्माण होता है।
iii. पोत निर्माण उद्योग:
- पोत निर्माण एक पूंजी-गहन उद्योग है, और भारत में इसके पांच प्रमुख केन्द्र हैं: विशाखापत्तनम, कोलकाता, कोच्चि, मुम्बई और मझगाँव।
- कोच्चि और विशाखापत्तनम में 1,00,000 टन और 50,000 टन के जहाज बनाए जाते हैं।
- मझगाँव पोत प्रांगण भारतीय नौसेना के पोतों के निर्माण के लिए प्रयोग होता है।
- गार्डनरीज (कोलकाता) में माल नौकाएँ, तटपोत, जलपोतों के लिए डीजल इंजन बनाए जाते हैं।
iv. वायुयान उद्योग:
- यह उद्योग पूरी तरह सरकार के नियंत्रण में है, और इसका पहला कारखाना 1940 में बंगलूर में स्थापित हुआ था।
- 1964 में एरोनाटिक्स इंडिया लिमिटेड के साथ मिलकर हिन्दुस्तान एरोनाटिक्स इंडिया लिमिटेड (HAL) की स्थापना की गई।
- भारत में छोटे और बड़े वायुयानों का निर्माण किया जाता है।
- प्रमुख वायुयान निर्माण केन्द्र: बंगलूर, कानपुर, नासिक (ओझर), उड़ीसा (कोरापुट), आंध्रप्रदेश (हैदराबाद)।
फुटलुज अर्थात तकनीकी एवं श्रमिक दक्षता आधारित उद्योग
सूचना प्रौद्योगिकी तथा इलेक्ट्रॉनिक उद्योग
- यह उद्योग ज्ञान आधारित है, जिसमें उच्च प्रौद्योगिकी, निरंतर शोध और अनुसंधान की आवश्यकता होती है।
- इसमें ट्रांजिस्टर, टेलीविजन, टेलीफोन, पेजर, राडार, सेल्यूलर टेलीकाम, लेजर, जैव प्रौद्योगिकी, कम्प्यूटर हार्डवेयर और सॉफ़्टवेयर शामिल हैं।
- प्रमुख केंद्र: बंगलूर, मुम्बई, दिल्ली, हैदराबाद, पूणे, चेन्नई, कोलकाता, कानपुर, लखनऊ।
- बंगलूर को “सिलिकॉन सिटी” और “इलेक्ट्रॉनिक उद्योग की राजधानी” कहा जाता है।
- यह उद्योग रोजगार सृजन का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन चुका है, और इसमें 30% महिलाएँ कार्यरत हैं।
तैयार वस्त्र एवं पोशाक उद्योग
- भारत में हल्के उद्योग के रूप में तैयार वस्त्र उद्योग पूरे देश में फैला है।
- प्रमुख केंद्र: लखनऊ, लुधियाना, कोलकाता, जयपुर, श्रीनगर, चंडीगढ़, सूरत, शाहदरा, मऊ।
- मेरठ, मुरादाबाद, आगरा, मथुरा, बुलन्दशहर होजियरी और रेडीमेड वस्त्र उद्योग के लिए प्रसिद्ध हैं।
सौंदर्य प्रसाधन उद्योग
- भारत सौंदर्य प्रसाधन के लिए प्राचीन समय से प्रसिद्ध रहा है।
- इसमें साबुन, तेल, पाउडर, लिपस्टिक, नेलपॉलिश, कृत्रिम ज्वेलरी आदि आते हैं।
- प्रमुख केंद्र:
- चंदन आधारित सौंदर्य उत्पाद: मैसूर।
- इत्र: जौनपुर।
- खुशबूदार तेल: कन्नौज।
- अच्छे किस्म के साबुन: मुम्बई, पूणे, कोलकाता।
- कृत्रिम ज्वेलरी: दिल्ली, पश्चिम बंगाल, जयपुर।
खिलौना उद्योग
- खिलौना निर्माण उद्योग भारत में रोजगार सृजन करता है, लेकिन चीन और जापान के इलेक्ट्रॉनिक खिलौने के आयात से इसमें कमी आई है।
- प्रमुख केंद्र: शिवकाशी, बनारस, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद, मदुरई, भोपाल।
राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों का योगदान
- किसी भी देश की आर्थिक सम्पन्नता उसके निर्माण उद्योगों के विकास से मापी जाती है।
- उद्योग रोजगार प्रदान कर कृषि पर निर्भरता कम करते हैं।
- निर्मित वस्तुओं के निर्यात से विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
- औद्योगिक विकास ने जनजातीय क्षेत्रों में क्षेत्रीय असमानताओं को कम किया है।
- भारत में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में विनिर्माण उद्योग का योगदान 17% है।
- पूर्वी एशियाई देशों में निर्माण उद्योग का योगदान GDP का 25-35% है।
- भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में 7% की वार्षिक वृद्धि दर रही है, जो अगले दशक में 12% अपेक्षित है।
- 2007-08 से विनिर्माण क्षेत्र की विकास दर 9-10% रही है।
- राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्धा परिषद की स्थापना से लक्ष्य को पूरा करने के प्रयास हो रहे हैं।
वैश्वीकरण का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
वैश्वीकरण का अर्थ:
- वैश्वीकरण का मतलब है देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था से जोड़ना।
- पूँजी, तकनीकी और व्यापारिक आदान-प्रदान वैश्वीकरण के तहत आते हैं।
उदारीकरण:
- उद्योग और व्यापार को अनावश्यक प्रतिबंधों से मुक्त कर प्रतियोगी बनाना।
निजीकरण:
- उद्योगों का स्वामित्व निजी क्षेत्र को सौंपना।
- उद्योगों में सरकारी एकाधिकार कम करना या समाप्त करना।
वैश्वीकरण के लाभ:
- विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि।
- भारतीय अर्थव्यवस्था की GDP दर विकासशील देशों में उच्च।
वैश्वीकरण के दुष्प्रभाव:
- स्वदेशी और लघु-कुटीर उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव।
- रोजगार के अवसर कम हुए।
- गरीबी उन्मूलन और कृषि विकास में बाधाएँ।
उद्योगों से उत्पन्न प्रदूषण का प्रभाव

प्रमुख प्रदूषण प्रकार:
- वायु, जल, ध्वनि और भूमि प्रदूषण।
वायु प्रदूषण:
- उद्योगों से निकली गैसें जैसे CO, SO₂ वायु प्रदूषण का कारण।
- CO गैस से शरीर में ऑक्सीजन वहन क्षमता घटती है।
- SO₂ से आँखों में जलन, खाँसी और फेफड़ों की बीमारियाँ।
जल प्रदूषण:
- औद्योगिक अवशिष्ट जल को बिना उपचारित नदी-तालाबों में छोड़ना।
- प्रमुख प्रदूषक: कोयला, उर्वरक, रसायन, प्लास्टिक।
- गंदा पानी पीने से हैजा, टाइफाइड जैसी बीमारियाँ होती हैं।
ध्वनि प्रदूषण:
- उद्योगों और परिवहन के साधनों से अनावश्यक शोर।
- शोर से बहरापन, चिड़चिड़ापन और नींद में कमी।
भूमि प्रदूषण:
- औद्योगिक कचरे से मृदा की गुणवत्ता प्रभावित।
तापीय प्रदूषण:
- गर्म जल को बिना ठंडा किए जल स्रोतों में छोड़ने से सूक्ष्म जीवों का नाश।
प्रदूषण नियंत्रण के उपाय:
- उद्योगों को निर्धारित क्षेत्रों में स्थापित करना।
- वैकल्पिक ईंधन और आधुनिक उपकरणों का उपयोग।
- औद्योगिक जल का उपचार (प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक) कर नदियों में छोड़ा जाए।
- भूमि प्रदूषण को रोकने के लिए कचरे का पुनः उपयोग और निपटान